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महाशिवरात्रि विशेष: अपार आस्था का केन्द्र द्वारीखाल ब्लॉक के चेलुसैंण में स्तिथ नागदेव गढ़ी मंदिर; शिवरात्रि पर लगता है भक्तों का तांता! देखें


 एबीएन आवाज़ डेस्क 

द्वारीखाल/चेलुसैंण। उत्तराखंड को प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों की तपोस्थली व देवी देवताओं का वास होने के कारण देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां पग-पग पर स्थित मंदिर, मठ, शिवालय उत्तराखंड की विशेषता को उजागर करते हैं, जो आज भी अपने अस्तित्व को बनाए हुए हैं।


महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आज हम बात कर रहे हैं, जनपद पौड़ी के द्वारीखाल ब्लॉक, चेलुसैंण में स्थित सिद्ध पीठ नागदेव गढ़ी की, बता दें नागदेव गढ़ी का भी पहाड़ में अपना एक विशेष महत्व रहा है। इसी के चलते द्वारीखाल ब्लॉक के चेलुसैंण में स्थित नागदेव गढ़ी मंदिर श्रद्धालुओं की असीम आस्था का केंद्र है। 

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जनपद पौड़ी उत्तराखंड के द्वारीखाल ब्लॉक से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चेलुसैंण एक छोटा सा बाजार है। जहां तक का सफर श्रद्धालु जीप या बस से कर सकते हैं। चेलुसैण से महज 2 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद बांज, बुरांश के घने जंगलों के बीच नागदेव गढ़ी का भव्य मंदिर विराजमान है। नागदेव गढ़ी में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु अलग-अलग स्थानों से दर्शनों के लिए आते हैं और महा शिवरात्रि के दिन यहां सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहता है, श्रद्धालु पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं और शिवलिंग में जल, दूध व पुष्प चढ़ाते हैं, लोक मान्यता के अनुसार जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहां मनौती मांगता है नागदेव बाबा और भगवान भोलेनाथ उसकी मनौती पूर्ण करते हैं।


पौराणिक मान्यता: -

स्थानीय लोगों के अनुसार कुछ वर्षों पहले श्री गंगा गिरी जी महाराज इस स्थान पर आए थे, यहां पर एक बांज के वृक्ष के पास वे कुटिया बनाकर रहने लगे। वहीं नजदीक के कुछ गांव के लोग यहां पर अपनी गाय को चराने के लिए लाया करते थे। इसी स्थान पर एक नाग को भी बांज के वृक्ष के पास देखा जाता रहा है और कहते हैं कि उसी बांज के वृक्ष पर सिमल्या गांव की एक व्यक्ति की गाय अपना दूध चढ़ाती थी। जब उस व्यक्ति को इस बात का पता चला तो वह व्यक्ति क्रोधित होकर इस बांज के वृक्ष के पास गया और उसने कुल्हाड़ी से उस वृक्ष पर वार किया। फिर उस व्यक्ति के स्वपन में नाग देव ने इस स्थान पर मंदिर के निर्माण करवाने को कहा फिर कुछ समय पश्चात इस बांज के वृक्ष के पास ग्रामीणों और श्री गंगागिरी जी महाराज के द्वारा नागदेव गढ़ी का मंदिर का निर्माण हुआ जो कि आज अब भव्य रूप में यहां पर विराजमान है। 


अपार आस्था का केंद्र नागदेव गढ़ी: -

यहाँ पर बांज के वृक्ष पर ही सटा हुआ पौराणिक मंदिर यहां की महत्ता को विशेष रूप से उजागर करता है, यहां पर मां वैष्णो देवी का मंदिर भी स्थापित है और साथ ही गंगा गिरी जी महाराज की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर के अंदर भगवान शिव का शिवलिंग भी है। यहां कथा, कीर्तन और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। महाशिवरात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहां भक्तों की काफी भीड़ मौजूद रहती है। श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना के साथ शिवलिंग पर जल और बेलपत्र से जलाभिषेक करते हैं और श्रद्धा भक्ति से मन्नतें मांगते हैं। मनोरम पहाड़ियों तथा बांज और बुरांश के घने जंगलों के बीच स्थित नागदेव गढ़ी का भव्य मंदिर श्रद्धालुओं के लिए अपार आस्था का केंद्र बना हुआ है। 

महत्ता: - 

लोक मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से इस नागदेव गढ़ी मंदिर में दर्शन के लिए आता है तो नागदेव उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसके अलावा मंदिर के बारे में कई अन्य की किवंदतियां प्रचलित हैं!!!

फोटोज़ साभार: नागदेवगढ़ी पौड़ी गढ़वाल - उत्तराखंड, फेसबुक पेज!

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